एक सुबह, मालिहाबाद के एक बाग में, सूरज की पहली किरण एक दशहरी आम के पत्ते पर पड़ी ओस की बूंद में चमक रही थी। यह कोई साधारण सुबह नहीं थी। यह उस विरासत की एक नई शुरुआत की कहानी कह रही थी, जहाँ पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान हाथ मिला रहे हैं। यह वह क्षण है जब एक किसान, रामकुमार, अपने पुश्तैनी बाग में नए सिरे से उम्मीद के साथ खड़ा है, और यह उम्मीद राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन, National Mission for Sustainable Agriculture (एनएमएसए) के मार्गदर्शन से जन्मी है।
सतत कृषि कोई नारा भर नहीं है; यह एक जीवनशैली का नाम है। यह उस सोच को बदलने का प्रयास है जिसमें हमने भूमि को सिर्फ लेना सिखा, देना भूल गए। एनएमएसए इसी नए दर्शन की ठोस जमीन है। यह मिशन किसानों को यह समझाने का काम कर रहा है कि अगली पीढ़ी के लिए हरा-भरा खेत छोड़ना, सिर्फ उपज की मोटी फसल काटने से कहीं ज्यादा जरूरी है। यह मिट्टी की सेहत, पानी की बूंद-बूंद की कदर, और जैव विविधता के संरक्षण पर केंद्रित है। यह एक ऐसी कृषि प्रणाली को बढ़ावा देता है जो प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर चलती है, न कि उसके खिलाफ।
अब हम रामकुमार के बाग में लौटते हैं, जहाँ दशहरी आम, Dasheri Aam सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि एक जीता-जागता प्रमाण है। पारंपरिक रूप से, दशहरी आम के बागों को भारी मात्रा में पानी और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है, जिससे भूजल स्तर दबाव में आता और मिट्टी की गुणवत्ता घटती जाती थी। लेकिन एनएमएसए ने इस चक्र को तोड़ा है।
रामकुमार ने मिशन के तहत ‘प्राकृतिक खेती’ को अपनाया। उसने जैविक खाद तैयार करना सीखा, अपने बाग में ड्रिप सिंचाई प्रणाली लगवाई, और फसल चक्रण के सिद्धांत को अपनाते हुए बाग के बीच की जगह पर दालें उगानी शुरू कीं। इसके दोहरे फायदे हुए – दालों ने मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाई, और साथ ही उसके परिवार के लिए अतिरिक्त पोषण का जरिया बनीं। इस पद्धति से उगाया गया दशहरी आम, Dasheri Mango न सिर्फ स्वाद में अधिक समृद्ध है, बल्कि बाजार में ‘ऑर्गेनिक दशहरी’ के तौर पर उसे मिलने वाला दाम भी पहले से कहीं ज्यादा है। दशहरी आम का मौसम अब सिर्फ गर्मियों की बात नहीं रह गया; यह रामकुमार के लिए सालभर की आय का एक स्थिर स्रोत बन गया है, क्योंकि उसने मिशन के मार्गदर्शन में फलों के प्रसंस्करण के बारे में भी जानकारी हासिल की है।
राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन, Sustainable Agriculture की सफलता सिर्फ तकनीकी हस्तक्षेप में नहीं, बल्कि किसानों को सशक्त बनाने में है। यह मिशन किसानों को केवल बीज या सब्सिडी नहीं देता; यह उन्हें ज्ञान देता है। मृदा स्वास्थ्य कार्ड एक ‘रिपोर्ट कार्ड’ नहीं, बल्कि उनकी जमीन का ‘स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी’ बन गया है। जल प्रबंधन के तरीके सिखाकर, यह मिशन किसानों को ‘जल योद्धा’ में तब्दील कर रहा है।
इसका लक्ष्य एक ऐसा कृषि परिदृश्य तैयार करना है जो जलवायु परिवर्तन के झटकों को सहन करने में सक्षम हो। जब अगली बार कोई सूखा पड़ेगा या अतिवृष्टि होगी, तो रामकुमार जैसा किसान पहले से कहीं अधिक तैयार होगा। उसकी मिट्टी अधिक स्वस्थ होगी, जल संचयन की व्यवस्था होगी, और आय के वैकल्पिक स्रोत होंगे।
मालिहाबाद का वह दशहरी आम का पेड़ अब सिर्फ एक पेड़ नहीं रहा। वह सतत कृषि का एक जीवंत प्रतीक है। उसकी जड़ें अब और गहरी जमती हैं, क्योंकि मिट्टी में जीवन लौट आया है। उसकी शाखाएं और फलने-फूलने को तैयार हैं, क्योंकि उन्हें पानी की हर बूंद का मूल्य पता है। और जब दशहरी आम का मौसम, Dasheri Mango Season आएगा, तो उसकी मिठास सिर्फ स्वाद में ही नहीं, बल्कि उस किसान की सफलता की कहानी में भी महसूस की जा सकेगी, जिसने राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन के साथ मिलकर अपने भविष्य को सुरक्षित करने का साहसिक कदम उठाया।
यह मिशन सरकारी योजना से कहीं बढ़कर एक राष्ट्रीय आंदोलन है – हरित भविष्य की ओर हर किसान का सशक्त, स्थिर और टिकाऊ कदम। यह हमारी धरती के साथ एक नए सामंजस्य का संकेत है, जहाँ प्रगति और संरक्षण एक साथ चलते हैं, और जहाँ हर फसल सिर्फ अनाज नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक वादा है।