छत्तीसगढ़ में पाम ऑयल की खेती किसानों के लिए आय का एक विश्वसनीय और टिकाऊ स्रोत बनकर उभर रही है। पिछले चार वर्षों में राज्य के 17 जिलों में 2,689 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर पाम ऑयल की खेती शुरू की गई है, जिससे हजारों किसानों को लाभ हो रहा है। केंद्र और राज्य सरकार की संयुक्त पहल के तहत किसानों को मुफ्त प्रशिक्षण, उच्च गुणवत्ता वाले पौधे और लाखों रुपये की सब्सिडी दी जा रही है।
राष्ट्रीय तिलहन और ऑयल पाम मिशन के तहत छत्तीसगढ़ सरकार किसानों को प्रति हेक्टेयर 29,000 रुपये मूल्य के 143 पौधे निःशुल्क उपलब्ध करा रही है। इसके अलावा, पौधरोपण, बाड़बंदी, सिंचाई, रखरखाव और अंतर-फसलों की कुल लागत (लगभग 4 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर) में से केंद्र और राज्य सरकार मिलकर 2 लाख रुपये का अनुदान देती हैं। शेष राशि के लिए बैंक ऋण की सुविधा भी उपलब्ध है।
इसके अतिरिक्त, ड्रिप सिंचाई, बोरवेल, पंपसेट, वर्मीकम्पोस्ट इकाइयों, ताड़ कटर और ट्रैक्टर ट्रॉलियों जैसी सुविधाओं के लिए भी सब्सिडी दी जाती है। 2 हेक्टेयर से अधिक जमीन पर खेती करने वाले किसानों को बोरवेल के लिए 50,000 रुपये की अतिरिक्त सहायता भी मिलती है।
पाम ऑयल की खेती से तीसरे वर्ष से उत्पादन शुरू होता है और अगले 25-30 वर्षों तक लगातार फल मिलते हैं। एक हेक्टेयर से प्रतिवर्ष 15-20 टन ताजे फलों के गुच्छे प्राप्त होते हैं, जिससे किसानों को 2.5 से 3 लाख रुपये तक की आय हो सकती है। महासमुंद जिले में सबसे अधिक 611 हेक्टेयर में पाम ऑयल की खेती की जा रही है, जबकि रायगढ़ के किसान राजेंद्र मेहर जैसे किसानों ने 10 एकड़ में 570 पौधे लगाकर अपनी बंजर जमीन को लाभकारी बना लिया है 14।
किसानों को उनकी उपज बेचने के लिए बाजार जाने की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार ने अनुबंधित कंपनियों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर सीधे खेत से खरीद की व्यवस्था की है। पाम ऑयल का उपयोग बिस्कुट, चॉकलेट, नूडल्स, साबुन, क्रीम और जैव ईंधन जैसे उत्पादों में होता है, जिसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
देश में पाम ऑयल उत्पादन में 2024-25 में 15% की वृद्धि हुई है और सरकार का लक्ष्य 2029-30 तक इसे 28 लाख टन तक पहुंचाने का है। छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल क्षेत्रों जैसे बस्तर और दंतेवाड़ा में भी इस खेती को बढ़ावा देकर रोजगार के नए अवसर पैदा किए जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में पाम ऑयल की खेती किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर साबित हो रही है। सरकारी सहायता, तकनीकी मार्गदर्शन और एमएसपी आधारित बिक्री व्यवस्था के कारण यह खेती न केवल आर्थिक रूप से लाभदायक है, बल्कि दीर्घकालिक आय का भी स्रोत बन रही है। अब यह किसानों के लिए 'एटीएम' की तरह काम कर रही है, जो निरंतर मुनाफा देती है।