कपास की खेती भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसे "सफेद सोना" कहा जाता है क्योंकि यह किसानों को स्थायी आमदनी दिलाने के साथ-साथ वस्त्र उद्योग को कच्चा माल उपलब्ध कराती है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा कपास उत्पादक और उपभोक्ता देश है, इसलिए कपास का आर्थिक और सामाजिक महत्व दोनों ही बहुत बड़ा है। कपास से न सिर्फ धागा और कपड़े बनते हैं बल्कि इसके बीजों से तेल और खली (पशु चारा) भी तैयार किया जाता है। इसका मतलब है कि एक ही फसल से किसानों को कई तरह की आय के अवसर मिलते हैं। यही कारण है कि यह खेती नकदी फसल मानी जाती है। इसके अलावा, कपास की खेती ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर भी पैदा करती है। बुवाई से लेकर कटाई और प्रसंस्करण तक हजारों मजदूरों को काम मिलता है। अगर किसान आधुनिक तकनीक जैसे Bt कपास, ड्रिप सिंचाई, ड्रोन स्प्रे और फसल चक्र अपनाएँ तो कम लागत में ज्यादा पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। कपास की खेती का महत्व सिर्फ आर्थिक लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसानों की जीविका, ग्रामीण विकास और राष्ट्रीय उद्योगों के लिए भी जरूरी है। इसी वजह से कपास की खेती को विशेष स्थान दिया जाता है।
कपास एक गर्मी पसंद करने वाली नकदी फसल है, जिसे बढ़ने और पनपने के लिए विशेष जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके लिए गर्म और शुष्क वातावरण सबसे अच्छा माना जाता है।
कपास की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी गहरी काली मिट्टी (रेगुर मिट्टी) मानी जाती है, क्योंकि इसमें नमी बनाए रखने की क्षमता अधिक होती है। इसके अलावा रेतीली दोमट मिट्टी भी उपयुक्त रहती है, बशर्ते उसमें अच्छी जल निकासी हो। कपास की फसल के लिए मिट्टी का pH स्तर 6 से 7.5 के बीच होना आदर्श है। बहुत अधिक क्षारीय या अम्लीय मिट्टी में उत्पादन प्रभावित हो सकता है। खेत की गहरी जुताई और जैविक खाद डालने से मिट्टी उपजाऊ बनती है और पैदावार बढ़ती है। अच्छी मिट्टी फसल की गुणवत्ता और रुई की मात्रा दोनों को बढ़ाती है।
कपास की खेती में बीज का चुनाव और बुवाई का समय सबसे महत्वपूर्ण कारक हैं, क्योंकि यही उत्पादन और गुणवत्ता को सीधे प्रभावित करते हैं।
सही बीज का चुनाव और समय पर बुवाई करने से किसान अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं और फसल की गुणवत्ता भी उत्कृष्ट बनी रहती है।
कपास की खेती में संतुलित खाद और उर्वरक प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि इससे फसल की गुणवत्ता और पैदावार दोनों बढ़ती हैं। कपास की फसल के लिए मुख्य उर्वरक जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की सही मात्रा में आवश्यकता होती है। सामान्यतः प्रति हेक्टेयर 60–80 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फॉस्फोरस और 40 किलो पोटाश देने की सिफारिश की जाती है। नाइट्रोजन पत्तियों और तनों की वृद्धि के लिए जरूरी है, जबकि फॉस्फोरस जड़ों और फूलों के विकास में मदद करता है तथा पोटाश पौधों को मजबूत बनाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। इसके साथ ही जैविक खाद जैसे गोबर की सड़ी खाद, वर्मी कम्पोस्ट और हरी खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए उपयोगी होती हैं। ये न केवल पौधों को पोषण देती हैं बल्कि मिट्टी की संरचना और नमी धारण करने की क्षमता भी सुधारती हैं। इसके अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे जिंक, बोरॉन और मैग्नीशियम का छिड़काव विशेष रूप से फूल और फल बनने के समय करना चाहिए, जिससे रुई की गुणवत्ता और उत्पादन बेहतर हो सके।
कपास की खेती में सिंचाई प्रबंधन का विशेष महत्व है, क्योंकि यह एक लंबी अवधि की फसल है और इसकी जड़ों को पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। कपास को अंकुरण से लेकर फल बनने तक अलग-अलग चरणों में पानी की अलग मात्रा चाहिए। सामान्यतः बुवाई के 30–40 दिन बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए, जिससे पौधों की जड़ें अच्छी तरह विकसित हो सकें। इसके बाद फूल और फल बनने की अवस्था में नियमित सिंचाई जरूरी होती है, क्योंकि इस समय नमी की कमी होने पर फूल और फल झड़ सकते हैं जिससे उत्पादन घट जाता है।
कपास की फसल में पानी का ठहराव नुकसानदायक होता है, क्योंकि जलभराव की स्थिति में जड़ें सड़ सकती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं। इसलिए खेत में अच्छी जल निकासी व्यवस्था होनी चाहिए। आधुनिक समय में ड्रिप सिंचाई प्रणाली कपास की खेती के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है। यह पद्धति न केवल 40–50% तक पानी की बचत करती है बल्कि पौधों को जड़ों तक समान रूप से नमी पहुंचाती है। इसके अलावा ड्रिप से साथ-साथ तरल खाद और सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी उपयोग किया जा सकता है, जिसे "फर्टिगेशन" कहते हैं।
कपास की फसल में कई रोग और कीट नुकसान पहुँचाते हैं, जिनसे उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित होती है। प्रमुख कीटों में सफेद मक्खी, थ्रिप्स और गुलाबी इल्ली शामिल हैं। सफेद मक्खी पत्तियों को पीला कर देती है, जबकि गुलाबी इल्ली फलियों को खाकर बर्बाद करती है। थ्रिप्स पौधों की पत्तियों को मुड़ा देता है। प्रमुख रोगों में पत्ती का झुलसा, करपा रोग और जड़ सड़न सामान्य हैं। इनसे बचाव के लिए फसल की नियमित निगरानी, नीम तेल जैसे जैविक कीटनाशकों का छिड़काव और समय पर फफूंदनाशक दवाओं का प्रयोग करना जरूरी है
कपास की खेती में कटाई और भंडारण सबसे अहम चरण है, क्योंकि यही फसल की गुणवत्ता और दाम तय करता है। कटाई तब करनी चाहिए जब 60–70% फलियाँ पककर फट चुकी हों और रुई साफ दिखे। अधपकी फसल काटने से गुणवत्ता और मूल्य दोनों घट जाते हैं। कटाई सुबह करनी चाहिए जब ओस सूख चुकी हो और रुई को साफ हाथों या दस्तानों से तोड़ना चाहिए। कटाई के बाद रुई को धूप में सुखाकर अलग-अलग ग्रेड में छांटकर पैक करना बेहतर होता है। भंडारण के लिए सूखी, हवादार और नमी रहित जगह का चयन जरूरी है। इससे रुई की गुणवत्ता लंबे समय तक बनी रहती है और किसानों को बाजार में अच्छा दाम मिलता है।
कपास की खेती किसानों के लिए कई तरह से लाभकारी है। यह एक नकदी फसल है, जिससे किसानों को सीधे बाजार से अच्छी आमदनी मिलती है। कपास से धागा, कपड़ा, तेल और पशु चारा जैसे कई उत्पाद बनते हैं, जिससे इसकी हमेशा मांग बनी रहती है। यह न केवल किसानों की आय बढ़ाती है बल्कि ग्रामीण इलाकों में मजदूरों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा करती है। सही तकनीक और प्रबंधन अपनाने पर कपास की फसल से किसानों को स्थिर और लंबे समय तक आर्थिक सुरक्षा मिलती है।
कपास की खेती को लाभकारी बनाने के लिए किसानों को कुछ खास उपाय अपनाने चाहिए। सबसे पहले हमेशा प्रमाणित और रोग प्रतिरोधक बीज का चयन करें। खेत में जैविक खाद, वर्मी कम्पोस्ट और फसल चक्र का उपयोग करें ताकि मिट्टी उपजाऊ बनी रहे। ड्रिप सिंचाई प्रणाली से पानी की बचत होती है और पौधों को पर्याप्त नमी मिलती है। फसल की नियमित निगरानी और समय पर जैविक व रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग रोगों को नियंत्रित करता है। इसके साथ ही किसानों को सरकारी योजनाओं और कृषि वैज्ञानिकों की सलाह का लाभ उठाना चाहिए ताकि कपास की पैदावार और मुनाफा दोनों बढ़ सकें।
कपास की खेती किसानों के लिए एक भरोसेमंद और लाभदायक विकल्प है। यदि किसान आधुनिक तकनीक, सही प्रबंधन और सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएँ तो यह फसल उन्हें “सफेद सोना” की तरह स्थायी आमदनी दे सकती है। जैविक खेती और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाकर किसान लागत कम कर सकते हैं और उत्पादन व गुणवत्ता दोनों में सुधार ला सकते हैं। इस तरह कपास की खेती किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने और उन्हें निरंतर लाभ दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
Q1. कपास की खेती कब करनी चाहिए?
बरसात में जून–जुलाई और सिंचित क्षेत्रों में फरवरी–मार्च।
Q2. कपास की पैदावार कितनी हो सकती है?
20–25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन संभव है।
Q3. कपास की खेती में सबसे बड़ी समस्या क्या है?
कीट और रोग जैसे गुलाबी इल्ली और सफेद मक्खी।
Q4. कपास की खेती से किसानों को सबसे बड़ा लाभ कैसे होता है?
कपास हमेशा मांग में रहती है, जिससे किसानों को ऊंचा दाम मिलता है।
Q5. कपास की फसल में कौन सी मिट्टी सबसे अच्छी है?
गहरी काली मिट्टी और रेतीली दोमट मिट्टी।