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कपास की खेती(kapas ki kheti) से भरपूर उत्पादन और दोगुना मुनाफा

20 Aug, 2025 03:04 PM

कपास की खेती (Kapas ki Kheti) भारत की सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है। इसे "सफेद सोना" कहा जाता है क्योंकि यह किसानों को स्थिर और अच्छा मुनाफा देती है।

FasalKranti
Emran Khan, समाचार, [20 Aug, 2025 03:04 PM]
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कपास की खेती (Kapas ki Kheti) भारत की सबसे महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है। इसे "सफेद सोना" कहा जाता है क्योंकि यह किसानों को स्थिर और अच्छा मुनाफा देती है। कपास का व्यापक उपयोग कपड़ा उद्योग, तेल उत्पादन और पशु चारे तक में होता है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश है और यह हमारे किसानों की आजीविका का मजबूत आधार है।

लेकिन कपास की खेती (Kapas ki Kheti) से अधिकतम लाभ कमाने के लिए किसानों को सही समय पर बोआई, संतुलित सिंचाई, क्षेत्रानुसार उपयुक्त किस्मों का चयन और कीट प्रबंधन जैसे वैज्ञानिक उपाय अपनाना आवश्यक है। ऐसा करने से किसान भाई भरपूर उत्पादन और दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं।

कपास की खेती का सही समय (Boai Ka Samay)

कपास की पैदावार काफी हद तक बोआई के समय पर निर्भर करती है।

  • उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी):
    • बोआई का समय अप्रैल के अंत से जून की शुरुआत तक।
    • समय पर बोआई करने से फसल जल्दी तैयार होती है और कीटों का प्रकोप कम रहता है।
  • मध्य भारत (महाराष्ट्र, गुजरात, एमपी):
    • मानसून की शुरुआत के साथ जूनजुलाई में बोआई करें।
    • देर से बोआई करने पर गुलाबी सुंडी का प्रकोप ज्यादा होता है।
  • दक्षिण भारत (तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र, तमिलनाडु):
    • यहां दो बार बोआई की जा सकती है मईजून और सितंबरअक्टूबर।

सुनहरा नियम: बोआई हमेशा मानसून की शुरुआत में करनी चाहिए ताकि नमी बनी रहे और पौधे तेजी से विकसित हों।

कपास की खेती के लिए अच्छे बीज का चयन कैसे करें?

1. हमेशा प्रमाणित बीज ही खरीदें

  • कपास की खेती में बीज की गुणवत्ता सबसे महत्वपूर्ण है।
  • किसान भाइयों को कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), कृषि विश्वविद्यालय, सरकारी बीज केंद्र या मान्यता प्राप्त कंपनियों से ही बीज लेना चाहिए।
  • बाजार से बिना प्रमाणपत्र वाला बीज लेने पर नकली बीज मिलने का खतरा रहता है, जिससे पैदावार घट जाती है और कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है।
  • बीज खरीदते समय पैकेट पर IS मार्क या सरकारी प्रमाणन चिन्ह अवश्य देखें।

2. क्षेत्र अनुसार किस्म का चुनाव करें

कपास की किस्म हर क्षेत्र के मौसम और मिट्टी के अनुसार अलग-अलग परिणाम देती है।

  • उत्तर भारत (पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी): जल्दी पकने वाली और मध्यम अवधि की किस्में।
  • मध्य भारत (गुजरात, महाराष्ट्र, एमपी): बीटी कपास और हाइब्रिड किस्में ज्यादा सफल।
  • दक्षिण भारत (तेलंगाना, आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु): लंबी अवधि वाली किस्में बेहतर।

किसान भाइयों को अपने क्षेत्र के लिए कृषि विशेषज्ञ या KVK से सलाह लेकर किस्म चुननी चाहिए।

3. बीटी कपास (Bt Cotton) क्यों जरूरी है?

  • गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) जैसे कीटों से बचाव।
  • अधिक उत्पादन और बेहतर गुणवत्ता।
  • कीटनाशक पर खर्च कम।

लेकिन ध्यान रखें कि बीटी कपास के साथ Refuge Crop (गैर-बीटी पौधे) भी लगाना चाहिए ताकि कीटों में प्रतिरोधक क्षमता न बढ़े।

4.  हाइब्रिड बनाम देसी किस्में

विवरण

हाइब्रिड किस्में

देसी किस्में

उत्पादन क्षमता

15–20 क्विंटल/हेक्टेयर

8–10 क्विंटल/हेक्टेयर

रेशे की गुणवत्ता

लंबा और अच्छा रेशा

मध्यम रेशा

पानी की जरूरत

अधिक

कम

खाद/उर्वरक की जरूरत

ज्यादा

कम

रोग/कीट सहनशीलता

मध्यम

अधिक

बाजार मूल्य

ज्यादा

सामान्य

अगर आपके पास सिंचाई और खाद की सुविधा है तो हाइब्रिड किस्में बेहतर हैं।
वर्षा आधारित खेती के लिए देसी किस्में ज्यादा सुरक्षित रहती हैं।

5. बीज की गुणवत्ता की जांच कैसे करें?

  1. अंकुरण क्षमता:
    • बीज की अंकुरण क्षमता कम से कम 75–80% होनी चाहिए।
    • जांचने का तरीका: 100 बीज गीले कपड़े में रखें और 5–7 दिन बाद देखें कि कितने अंकुरित हुए।
  2. शुद्धता:
    • बीज में अन्य बीज, खरपतवार या टूटे दाने नहीं होने चाहिए।
  3. नमी:
    • बीज सूखे और कठोर होने चाहिए। ज्यादा नमी वाले बीज खराब हो जाते हैं।

6. बीज उपचार (Seed Treatment) क्यों जरूरी है?

  • बोआई से पहले बीज का उपचार करने से फसल की सुरक्षा होती है और अंकुरण अच्छा होता है।
  • फफूंदनाशक उपचार: ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम।
  • जैविक उपचार: नीम तेल, अजादिराक्टिन या बायोपेस्टिसाइड।

 बीज उपचार से फसल की शुरुआती अवस्था में रोग और कीटों से सुरक्षा मिलती है।

7. जैविक बीज का महत्व

  • जैविक कपास के लिए जैविक बीज लेना जरूरी है।
  • अंतरराष्ट्रीय बाजार में जैविक कपास को प्रीमियम दाम मिलता है।
  • सरकार भी जैविक बीज और खेती पर कई योजनाओं और सब्सिडी का लाभ देती है।

कपास की फसल में सिंचाई (Irrigation Schedule in Cotton Farming)

कपास की फसल को समय पर और सही मात्रा में पानी देना बहुत जरूरी है क्योंकि नमी की कमी से फूल और गेंदें झड़ जाती हैं, जिससे उत्पादन कम हो जाता है। कपास की खेती में औसतन 6–7 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बोआई के तुरंत बाद करनी चाहिए, दूसरी सिंचाई अंकुरण के 20–25 दिन बाद, और उसके बाद फूल आने (45–70 दिन) तथा गेंद बनने के समय नियमित नमी बनाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है। कटाई से 15–20 दिन पहले सिंचाई रोक दें ताकि गेंदें सही से खुल सकें। सिंचाई के लिए ड्रिप प्रणाली सबसे उपयुक्त मानी जाती है क्योंकि इससे 30–40% पानी की बचत होती है और पौधों की जड़ों तक सीधे नमी पहुँचती है। वहीं, स्प्रिंकलर और वर्षा जल संचयन तकनीकें भी उत्पादन बढ़ाने और पानी बचाने के लिए प्रभावी हैं।

गुलाबी सुंडी (Pink Bollworm) से बचाव के उपाय

गुलाबी सुंडी कपास की सबसे खतरनाक कीट है, जो कपास की गेंदों में घुसकर अंदर से नुकसान करती है और उत्पादन 30–40% तक घटा सकती है। किसान भाई यदि शुरुआत से ही सतर्क रहें और सही उपाय अपनाएँ तो इससे बचाव संभव है।

1. सही किस्म का चुनाव

  • बीटी कपास (Bt Cotton) बोएँ, क्योंकि इसमें गुलाबी सुंडी का प्रकोप अपेक्षाकृत कम होता है।
  • बोआई के साथ कुछ प्रतिशत Refuge (गैर-बीटी पौधे) लगाना अनिवार्य है, ताकि कीटों में प्रतिरोधक क्षमता न बढ़े।

2. समय पर बोआई

  • बोआई हमेशा मानसून की शुरुआत (जूनजुलाई) में करें।
  • देर से बोआई करने पर गुलाबी सुंडी का प्रकोप ज्यादा होता है।

 

3. खेत प्रबंधन

  • कपास की कटाई के बाद खेत में बचे हुए डंठल और अधपकी गेंदें तुरंत नष्ट करें या जला दें।
  • फसल के अवशेष न छोड़ें, क्योंकि इन्हीं में कीट अपना जीवन चक्र पूरा करते हैं।

4. जैविक उपाय

  • फेरोमोन ट्रैप (20–25 प्रति हेक्टेयर) लगाएँ, इससे नर कीट आकर्षित होकर फँस जाते हैं और उनका प्रजनन रुक जाता है।
  • नीम तेल (5 मि.ली./लीटर पानी) या अजादिराक्टिन का छिड़काव करें, जो सुरक्षित और प्रभावी है।

5. रासायनिक उपाय (केवल आवश्यकता पड़ने पर)

  • अगर प्रकोप ज्यादा हो तो कृषि वैज्ञानिक की सलाह से एमामेक्टिन बेंजोएट (Emamectin Benzoate) या स्पिनोसैड (Spinosad) का छिड़काव करें।
  • छिड़काव हमेशा सुबह या शाम को करें और दवाओं को बदल-बदलकर प्रयोग करें ताकि कीटों में प्रतिरोधक क्षमता न बने

अधिक उत्पादन के लिए उन्नत तकनीकें

  • मल्चिंग: खेत में प्लास्टिक या जैविक अवशेष बिछाकर नमी बचाएँ और खरपतवार नियंत्रित करें।
  • फसल चक्र: कपास के बाद दलहन (चना, मूंग, उड़द) बोएँ। इससे मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।
  • सह-फसलें: मूंगफली, अरहर या तिल जैसी फसलों को कपास के साथ लगाएँ। इससे जोखिम कम होता है और अतिरिक्त आय मिलती है।
  • सटीक कृषि (Precision Farming): ड्रोन और सेंसर से पौधों की स्थिति की निगरानी करें और सही समय पर खाद व दवा डालें।

निष्कर्ष

कपास की खेती में सही समय पर बोआई, 6–7 बार सिंचाई, और गुलाबी सुंडी से बचाव ही सफलता की कुंजी है। अगर किसान भाई उन्नत बीज, ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग, और जैविक उपाय अपनाएँ तो वे निश्चित ही भरपूर उत्पादन और दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं।

कपास की खेती पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. कपास की बोआई का सही समय कौन-सा है?
    जूनजुलाई (मानसून की शुरुआत) सबसे उपयुक्त समय है।
  2. कपास की फसल में कितनी बार सिंचाई करनी चाहिए?
    औसतन 6–7 बार, खासकर फूल और गेंद बनने के समय नमी जरूरी है।
  3. गुलाबी सुंडी से बचाव कैसे करें?
    बीटी कपास बोएँ, फेरोमोन ट्रैप लगाएँ और नीम आधारित दवा का प्रयोग करें।
  4. कपास की औसत उपज कितनी होती है?
    अच्छी किस्म और आधुनिक तकनीक से 15–20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
  5. कपास की खेती में ज्यादा मुनाफा कैसे मिलेगा?
    एफपीओ से जुड़कर और कपास को सीधे मिलों या निर्यातकों को बेचकर

 




Tags : Latest News | Agriculture | Himachal | Farming

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