केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) का दौरा किया और वहाँ जैविक कचरे से शुद्ध ग्रीन हाइड्रोजन बनाने की अभिनव तकनीक का अवलोकन किया। इस तकनीक को प्रो. दसप्पा और उनकी टीम द्वारा विकसित किया गया है, जो भारत को आत्मनिर्भर और पर्यावरणीय दृष्टि से अग्रणी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
कृषि अवशेषों से बनी पर्यावरण हितैषी ऊर्जा
मंत्री जोशी ने बताया कि इस सिस्टम की खास बात यह है कि यह खेतों में जलाए जाने वाले कृषि अपशिष्ट से 99% शुद्ध ग्रीन हाइड्रोजन तैयार करता है, जिसकी उत्पादन क्षमता प्रति घंटे 5 किलोग्राम है। उन्होंने कहा, "हर किलोग्राम हाइड्रोजन के उत्पादन से वातावरण से एक किलोग्राम से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड हटाई जाती है। यह शोध न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक उपलब्धि है।"
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम
उन्होंने इसे "वास्तव में आत्मनिर्भर नवाचार" करार देते हुए IISc को इसके लिए बधाई दी। मंत्री ने कहा कि यह तकनीक दिखाती है कि हम किस प्रकार मौलिक विज्ञान को व्यावहारिक और प्रभावशाली तकनीक में बदल सकते हैं।
राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से सीधा जुड़ाव
श्री जोशी ने इस नवाचार को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू किए गए राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन से जोड़ा। इस मिशन के तहत:
- प्रति वर्ष 5 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन का लक्ष्य
- 125 गीगावाट अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता
- ₹8 लाख करोड़ का संभावित निवेश
- 6 लाख से अधिक रोजगार
- 5 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन उत्सर्जन में कमी
उन्होंने बताया कि 3,000 मेगावाट इलेक्ट्रोलाइज़र उत्पादन और 8.6 लाख टन ग्रीन हाइड्रोजन के वार्षिक उत्पादन के लिए पहले ही निधि आवंटित की जा चुकी है।
शिक्षा और विज्ञान समुदाय के लिए चार राष्ट्रीय चुनौतियाँ
मंत्री जोशी ने वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के समक्ष चार प्रमुख चुनौतियाँ रखीं:
- हाइड्रोजन संरक्षण: हाइड्रोजन को सुरक्षित तरीके से संग्रहित करना एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए गहन शोध की आवश्यकता है।
- इलेक्ट्रोलिसिस लागत में कमी: उन्होंने CeNSE (सेंटर फॉर नैनो साइंस एंड इंजीनियरिंग) को अधिक कुशल और सस्ते इलेक्ट्रोलाइज़र सिस्टम विकसित करने का सुझाव दिया।
- हाइड्रोजन वाहनों की लागत में कमी: मंत्री ने बताया कि 5 पायलट परियोजनाओं के तहत 37 हाइड्रोजन वाहनों और 9 फ्यूलिंग स्टेशनों को समर्थन दिया गया है।
- ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत में कमी: वर्तमान लागत ₹300-400 प्रति किलोग्राम है, जिसे ₹100 और वर्ष 2030 तक $1 प्रति किलोग्राम तक लाने का लक्ष्य है।
भारत को ग्रीन हाइड्रोजन में वैश्विक नेता बनाने का आह्वान
समापन में श्री जोशी ने IISc को न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में सुलभ, विशाल और टिकाऊ हाइड्रोजन तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी बनने की चुनौती दी। उन्होंने मंत्रालय की ओर से पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया—चाहे वह पायलट परियोजनाएं हों, वित्तीय सहायता हो या औद्योगिक साझेदारी।
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