बिहार के बांका में बरगद प्रकृति के शृंगार के साथ ही लोगों की आस्था का केंद्र रहा है। आज जहां इस प्रजाति के पेड़ों की संख्या कम हो रही है, वहीं चांदन बाजार के समीप पांडेयडीह गांव का बूढ़ा बरगद छांव के साथ न्याय का संदेश बांट रहा है। इसकी विशालता और प्राचीनता दोनों लोगों को आकर्षित करती रही है। इसकी छांव में जहां गांव-जवार के लोगों को आराम मिलता है, वहीं अब तक छोटे-मोटे विवाद के सैकड़ों मामले यहां सुलझाए जा चुके हैं। यह परंपरा दशकों से कायम है।
बुजुर्ग विनोद पांडेय व वासुदेव प्रसाद समेत अन्य ने बताया कि सात-आठ दशक से वे लोग इस पेड़ को इसी रूप में देख रहे हैं। इस बूढ़े बरगद को सहारा देने के लिए इसकी 100 से अधिक शाखाएं जमीन पर खंभे की तरह खड़ी हो चुकी हैं। पेड़ के नीचे पहुंचने पर इसकी हर शाखा एक विशाल बरगद का रूप धारण किए दिखती है। इस पेड़ के नीचे चांदन बाजार, बिरिनयां, गोपडीह, नवाडीह, खिरहरतरी, शेखपुरा आदि गांवों के लोग दिन भर जमा रहते हैं। पेड़ के एक तने के नीचे शीतला माता का मंदिर भी बनाया गया है। इस कारण यहां कोई गंदगी फैलाने की भी हिमाकत नहीं करता है। पहले कुछ स्थानीय लोगों के चंदे से पेड़ के नीचे चबूतरा बना। बाद में पंचायत की योजना से भी काम हुआ।
पारिवारिक और जमीन विवाद सुलझाने का बन रहा गवाह: बरिनया पंचायत के पूर्व सरपंच कपिलदेव दास बताते हैं कि बरगद की छांव में हर दिन किसी ना किसी गांव की पंचायती तय है। अभी उनकी पत्नी दुबिया देवी सरपंच हैं। पत्नी के सरपंच बनने के पहले से वे आसपास के गांवों का विवाद आपसी समझौते से सुलझाते रहे हैं। पारिवारिक और जमीन विवाद से संबंधित ज्यादातर मामले यहां आते हैं। विनोद पांडेय, सुधाकर चौधरी, वासुदेव प्रसाद, रामसागर राय व सरपंच गौतम दुबे बताते हैं कि इस जगह से बांका जिला मुख्यालय की दूरी 60 किलोमीटर है। पहले भागलपुर जिला होने पर वह 110 किलोमीटर दूर था।
यातायात के संसाधन सीमति थे और लोग गरीब। इस कारण ही इलाके के लोगों ने अधिसंख्य विवाद पंचायती से सुलझाने का प्रयास शुरू किया। अब वे लोग इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। इसमें हमलोग निर्वाचित पंच और सरपंच को भी शामिल कर रहे हैं। गरीब परिवारों के लोगों को सस्ता और सुगम न्याय उपलब्ध कराना ही इसका मकसद है। गोपडीह गांव के शंभू दास के भाइयों के बीच आपसी बंटवारे का विवाद मारपीट तक पहुंच गया था। मामला पुलिस तक पहुंचने की नौबत आ गई थी। इसके बाद एक पक्ष ने ग्रामीण पंचायती का प्रस्ताव दिया। इसी पेड़ के नीचे पंचों के बंटवारे को सभी भाइयों ने मान लिया और अब विवाद खत्म हो गया है।
खिरहरतरी गांव के एक लड़के और शेखपुरा की एक लड़की की शादी हाल में हुई थी। शादी के बाद दोनों परिवारों में विवाद बढ़ा। फिर दोनों गांवों के लोग आमने-सामने आ गए। हाल ही में दोनों पक्षों के बीच इसी बरगद के नीचे समझौता कराया गया। अब लड़की लड़के के घर खिरहरतरी में रह रही है। समन्वयक, जिला साइंस फार सोसाइटी का कहना है कि बरगद के पेड़ की आयु 500 वर्ष से अधिक होती है। पांडेयडीह का बरगद और इसकी शाखाओं के विस्तार को देखकर यह कम से कम 300 साल पुराना लग रहा है। पानी की अधिक जरूरत पडऩे पर इसकी शाखाओं से जड़ें निकालकर खुद धरती पर पहुंच जाती हैं। यही जड़ पानी की अधिक जरूरत पर शाखाएं बन जाती है। प्रकृति के लिए बरगद को अनमोल धरोहर माना गया है। पांडेयडीह के तरह हर गांव में विशाल बरगद की जरूरत है।