भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसमें उत्तर प्रदेश की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है। राज्य की कृषि प्रणाली विविध फसलों पर आधारित है, जिनमें गन्ना (Sugarcane) एक प्रमुख फसल के रूप में उभर कर सामने आई है। "उत्तर प्रदेश में गन्ना खेती (Sugarcane Farming in Uttar Pradesh) " न केवल कृषि क्षेत्र की रीढ़ है, बल्कि यह राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था, चीनी उद्योग और इथेनॉल उत्पादन का मुख्य आधार भी है। भारत में गन्ने का सबसे अधिक उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है, जो देश के कुल गन्ना उत्पादन का लगभग 40% हिस्सा है।
उत्तर प्रदेश (Sugarcane Farming in Uttar Pradesh) में गन्ने की खेती सदियों पुरानी है। ऐतिहासिक रूप से, किसान इसे गुड़ और खांडसारी उत्पादन के लिए उगाते थे, लेकिन आधुनिक युग में इसका उपयोग विविध औद्योगिक उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। आज चीनी, इथेनॉल, गन्ना रस, बायोगैस और जैविक खाद जैसे कई मूल्यवर्धित उत्पादों में गन्ना एक मुख्य कच्चा माल बन गया है।
वर्ष 2024-25 के अनुमानों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती लगभग 23 लाख हेक्टेयर भूमि पर की गई, जिससे राज्य में कुल उत्पादन 200 मिलियन टन (20 करोड़ टन) से अधिक रहा। यह उत्पादन मुख्यतः निम्नलिखित जिलों से आता है:
इन क्षेत्रों की जलवायु, उपजाऊ दोमट मिट्टी और सिंचाई की अच्छी व्यवस्था गन्ना उत्पादन के लिए अत्यंत अनुकूल है।
गन्ना एक लंबी अवधि की फसल है, लेकिन इससे मिलने वाली आय अन्य फसलों जैसे गेहूं या धान की तुलना में कहीं अधिक होती है। एक बार बोने पर इसकी रैटन फसल (Ratoon Crop) से दो या तीन बार तक फसल ली जा सकती है, जिससे लागत कम और लाभ अधिक होता है।
राज्य (Sugarcane Farming in Uttar Pradesh) में 120 से अधिक चीनी मिलें सक्रिय हैं, जो किसानों से सीधा गन्ना खरीदती हैं। इससे बाजार में मूल्य गिरने का खतरा नहीं रहता और किसान को स्थिर आय मिलती है।
राज्य और केंद्र सरकारें गन्ना किसानों को कई योजनाओं के माध्यम से समर्थन देती हैं:
भारत सरकार द्वारा पेट्रोल में इथेनॉल मिश्रण की नीति (E20 लक्ष्य) के अंतर्गत गन्ने से उत्पादित इथेनॉल की मांग तेजी से बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश की कई मिलें इथेनॉल उत्पादन में लगी हुई हैं, जिससे किसानों को अप्रत्यक्ष रूप से अधिक लाभ मिल रहा है।
उत्तर प्रदेश में गन्ना खेती (Sugarcane Farming in Uttar Pradesh) अब पारंपरिक विधियों तक सीमित नहीं है। वैज्ञानिक पद्धतियों और कृषि मशीनरी ने खेती को लाभकारी और टिकाऊ बनाया है।
हालांकि अधिकतर मिलें समय पर भुगतान करती हैं, परंतु कुछ मामलों में किसानों को महीनों इंतजार करना पड़ता है, जिससे उनकी नकदी प्रवाह पर असर पड़ता है।
गन्ना एक जल-संवेदनशील फसल है, जिसे 1500 से 2500 मिमी तक पानी की आवश्यकता होती है। लगातार सिंचाई से भूमिगत जल स्तर में गिरावट देखने को मिलती है।
लगातार एक ही फसल उगाने से मिट्टी की उर्वरता घटती है, जिससे दीर्घकालिक उत्पादन प्रभावित होता है।
बदलते मौसम, अनियमित वर्षा और तापमान में उतार-चढ़ाव से फसल की वृद्धि और चीनी की मात्रा (recovery rate) पर असर पड़ता है।
उत्तर प्रदेश सरकार और विभिन्न अनुसंधान संस्थान मिलकर किसानों को आधुनिक तकनीक और जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं:
गन्ने से इथेनॉल, जैविक गुड़, ब्राउन शुगर, गन्ना रस और बायो-सीएनजी जैसे कई मूल्यवर्धित उत्पाद बनाए जा सकते हैं। भारत सरकार का E20 लक्ष्य (2025 तक 20% इथेनॉल मिश्रण) उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए एक बड़ा अवसर लेकर आ रहा है।
राज्य में सहकारी चीनी मिलों का आधुनिकीकरण, गन्ना आधारित बायोइकोनॉमी, और निर्यात संभावनाएं भविष्य में गन्ना खेती को और सशक्त बना सकती हैं।
उत्तर प्रदेश में गन्ना खेती (Sugarcane Farming in Uttar Pradesh) न केवल किसानों की आमदनी का मजबूत आधार है, बल्कि यह राज्य की औद्योगिक प्रगति, ग्रामीण रोजगार और ऊर्जा सुरक्षा से भी सीधा जुड़ा है। सरकार की सक्रिय नीतियों, वैज्ञानिक पद्धतियों और नवाचारों के साथ यदि किसानों को सतत समर्थन मिलता रहे, तो उत्तर प्रदेश गन्ना उत्पादन और इससे जुड़े उत्पादों में राष्ट्रीय ही नहीं, वैश्विक अग्रणी बन सकता है।