PAU and CII Join Hands to Tackle Stubble Burning with Surface Seeding Innovation
PAU और CII ने मिलाया हाथ, इस तकनीक से पराली जलाने पर लगेगा अंकुश
20 May, 2025 02:46 PM
पंजाब में पराली जलाने की पुरानी और गंभीर समस्या से निपटने के लिए पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू), लुधियाना और कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई), गुरुग्राम के............
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Emran Khan, समाचार, [20 May, 2025 02:46 PM]
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पंजाब में पराली जलाने की पुरानी और गंभीर समस्या से निपटने के लिए पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (पीएयू), लुधियाना और कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई), गुरुग्राम के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता (MoU) हुआ है। इस समझौते का उद्देश्य पीएयू द्वारा विकसित "धान की कटाई के साथ-साथ गेहूं की बुवाई" तकनीक और सतही बुवाई मशीन (Surface Seeder) को बढ़ावा देना और किसानों तक पहुंचाना है।
यह समझौता पीएयू के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल के कार्यालय में हस्ताक्षरित हुआ। सीआईआई की ओर से मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुनील कुमार मिश्रा ने भाग लिया, जिनके साथ सीआईआई फाउंडेशन के प्रोजेक्ट लीड चंद्रकांत प्रधान और प्रोजेक्ट लीडर ताहिर हुसैन भी उपस्थित थे। इस साझेदारी के तहत सीआईआई जागरूकता, प्रशिक्षण और प्रचार-प्रसार का कार्य करेगा, जबकि पीएयू तकनीकी विशेषज्ञता, फील्ड डेमो और अनुसंधान कार्यों को संभालेगा। तकनीक की विशेषताएं इस उन्नत तकनीक में कंबाइन हार्वेस्टर को एक विशेष बीज बोने वाले अटैचमेंट से जोड़ा गया है, जो धान की कटाई के समय ही गेहूं की बुवाई और उर्वरक का छिड़काव करता है। पुआल को खेत में समान रूप से फैला दिया जाता है जिससे यह प्राकृतिक मल्च (mulch) का कार्य करता है। यह नमी को संजोने, खरपतवार को नियंत्रित करने और मिट्टी की जैविक गुणवत्ता को बढ़ाने में सहायक होता है जिससे पराली जलाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। विश्वविद्यालय और उद्योग की साझा पहल डॉ. गोसल ने इस समझौते को “शैक्षणिक और औद्योगिक समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण” बताया और कहा कि यह पहल किसानों, उद्यमियों और कृषि क्षेत्र के लिए लाभकारी होगी। पीएयू के रजिस्ट्रार डॉ. ऋषि पाल सिंह (आईएएस) ने तकनीकी सहयोग और किसानों को प्रशिक्षण देने की प्रतिबद्धता जताई। अनुसंधान निदेशक डॉ. अजीत सिंह धत्त ने बताया कि यह तकनीक न केवल पराली जलाने से राहत देती है, बल्कि उत्पादन लागत को भी कम करती है और गेहूं की समय पर बुवाई सुनिश्चित कर हीट स्ट्रेस से फसल को बचाती है। डॉ. माखन सिंह भुल्लर, निदेशक, विस्तार शिक्षा, ने कहा कि यह तकनीक पहले ही कई जिलों में सफलतापूर्वक प्रदर्शित की जा चुकी है और किसानों में इसे लेकर उत्साह है। प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. जसवीर सिंह गिल, जिन्होंने इस तकनीक को विकसित किया है, ने इसकी तकनीकी प्रक्रिया की जानकारी दी और बताया कि यह अटैचमेंट सटीक बीज बोने और पुआल के कुशल उपयोग में सक्षम है, जिससे गेहूं की अच्छी अंकुरण होती है।इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय के डीन डॉ. सी.एस. औलख और डॉ. हरी राम, प्रमुख, कृषि विभाग भी उपस्थित रहे और उन्होंने तकनीक के लाभों पर सहमति जताई। सीआईआई की भूमिका और भविष्य की योजना सुनील मिश्रा ने पीएयू के नवाचार प्रयासों की सराहना की और कहा कि यह साझेदारी सतत कृषि समाधान को जमीनी स्तर तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाएगी। श्री चंद्रकांत प्रधान ने बताया कि सीआईआई फाउंडेशन किसान उत्पादक संगठनों (FPOs), सेवा प्रदाताओं और ग्रामीण युवाओं को जोड़कर तकनीक को तेज़ी से अपनाने के प्रयास करेगा। इस पूरी पहल का समन्वय पीएयू के एसोसिएट डायरेक्टर (इंस्टिट्यूशन रिलेशंस) डॉ. विशाल बECTOR द्वारा किया गया। यह पहल पंजाब और आसपास के क्षेत्रों में संरक्षण कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित हो सकती है। "क्लीनर एयर, बेटर लाइफ" जैसे कार्यक्रमों के तहत पहले से ही सीआईआई और पीएयू की भागीदारी रही है, जो पंजाब में पराली जलाने पर नियंत्रण और सतत कृषि को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
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