देश की प्रतिष्ठित सहकारी संस्था नेफेड (NAFED) अब केवल किसानों की उपज बेचने तक सीमित नहीं रही। अब यह संगठन ‘किसान से किचन तक’ के मंत्र के साथ रेडी टू ईट फूड मार्केट में एक मजबूत ब्रांड बनकर उभर रहा है। समोसे, मटर पनीर और दाल मखनी जैसे स्वादिष्ट भारतीय व्यंजन अब नेफेड ब्रांड के तहत न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी धूम मचाने को तैयार हैं।
नेफेड ने हाल ही में मिडिल ईस्ट की दिग्गज रिटेल कंपनी लुलु ग्रुप के साथ एक महत्वपूर्ण समझौता किया है। इसका उद्देश्य भारतीय खाने को अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में पहचान दिलाना और किसानों के उत्पादों को वैश्विक प्लेटफॉर्म तक पहुंचाना है।
ऑनलाइन और इंटरनेशनल मार्केटिंग
नेफेड के रेडी टू ईट उत्पाद अब इसके ऑनलाइन पोर्टल पर भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा कंपनी का फोकस विदेशों में खासकर मिडिल ईस्ट देशों में अपना दायरा बढ़ाने पर है। लुलु ग्रुप के साथ करार इसी दिशा में एक बड़ा कदम है।
रेडी टू ईट में 2 साल की शेल्फ लाइफ
नेफेड के एमडी दीपक अग्रवाल के मुताबिक, "हम पहले केवल सरकारी एजेंसियों के साथ काम करते थे, लेकिन अब प्राइवेट सेक्टर को भी सीधे सामान बेचने लगे हैं। हमारा उद्देश्य है कि किसानों का अधिक से अधिक माल बिके और उन्हें सीधा लाभ पहुंचे।"
उन्होंने बताया कि नेफेड के रेडी टू ईट उत्पाद दो साल तक खराब नहीं होते, जिससे अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों में इसकी मांग और भी बढ़ने की संभावना है।
तेजी से बढ़ता कारोबार
नेफेड का बिजनेस भी बीते कुछ वर्षों में जबरदस्त बढ़ा है।
2019-20 में टर्नओवर: ₹16,281 करोड़
2023-24 में टर्नओवर: ₹26,520 करोड़
2019-20 में नेट प्रॉफिट: ₹165.65 करोड़
2023-24 में नेट प्रॉफिट: ₹492.38 करोड़
दलहन मिशन की नोडल एजेंसी
सरकार ने नेफेड को भारत को दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की जिम्मेदारी भी सौंपी है। इसके तहत वह शत-प्रतिशत दालों की सरकारी खरीद का संचालन करेगी।
नेफेड की शुरुआत
नेफेड की स्थापना 2 अक्टूबर 1958 को गांधी जयंती के मौके पर की गई थी। इसका मूल उद्देश्य किसानों की उपज को बेहतर बाज़ार दिलाना और उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाना था।अब नेफेड ब्रांड बनकर किसानों को नया प्लेटफॉर्म दे रहा है—जहां न सिर्फ उपज बेची जा रही है, बल्कि उसका मूल्य संवर्धन कर नए बाजारों तक पहुंचाया जा रहा है।