योग आज केवल एक स्वास्थ्य पद्धति नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में अपनाई गई एक जीवन शैली बन चुकी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि योग की जड़ें कहाँ से आईं? इसका इतिहास कितना पुराना है? आइए जानते हैं योग की उत्पत्ति, विकास और उसकी वैश्विक स्वीकृति की कहानी।
योग का उद्भव भारत की वैदिक सभ्यता में हुआ था। इसका सबसे पुराना उल्लेख ऋग्वेद में देखने को मिलता है, जहाँ ध्यान, आत्म-अनुशासन और संयम जैसे योग के मूल सिद्धांतों की बात की गई है। बाद में उपनिषदों में योग को गहराई से समझाया गया। खासकर कठोपनिषद में आत्मा और ब्रह्म के एकत्व की अवधारणा को 'योग' के माध्यम से परिभाषित किया गया।
योग को एक व्यवस्थित पद्धति के रूप में पहली बार प्रस्तुत किया महर्षि पतंजलि ने। उन्होंने लगभग 200 ईसा पूर्व में योगसूत्र की रचना की, जिसमें उन्होंने योग को आठ अंगों में विभाजित किया – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। यह प्रणाली आज 'अष्टांग योग' के नाम से प्रसिद्ध है। महर्षि पतंजलि ने योग को न केवल आध्यात्मिक बल्कि व्यावहारिक जीवन के लिए भी उपयुक्त बनाया।
योग का उपयोग प्राचीन भारत के कई धार्मिक समुदायों द्वारा आत्मसाधना और मोक्ष प्राप्ति के लिए किया जाता था। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के संत-महात्मा योग को आत्मज्ञान प्राप्त करने का माध्यम मानते थे। नाथ पंथ के योगियों, विशेषकर गोरखनाथ, ने योग को जनमानस में लोकप्रिय किया और उसे एक साधना और शारीरिक सुदृढ़ता का साधन बनाया।
19वीं सदी से लेकर आज तक कई महान योगाचार्यों ने योग को भारत की सीमाओं से बाहर ले जाकर विश्व भर में स्थापित किया। स्वामी विवेकानंद, स्वामी शिवानंद, परमहंस योगानंद, और बी.के.एस. अयंगर जैसे नाम योग के वैश्विक विस्तार में प्रमुख रहे। हाल के वर्षों में बाबा रामदेव जैसे योगगुरुओं ने योग को घर-घर तक पहुँचाया।
वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि योग अब केवल भारत की ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता की सांस्कृतिक विरासत बन चुका है।
योग केवल भारत की भूमि से जन्मा एक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह मानव जीवन को संतुलित, स्वस्थ और आत्मजागृत बनाने का माध्यम है। इसकी शुरुआत प्राचीन वेदों से हुई, लेकिन इसका प्रभाव आज भी उतना ही प्रासंगिक है। योग न केवल शरीर को सुदृढ़ करता है, बल्कि मन और आत्मा को भी संतुलन में लाता है। जब हम योग करते हैं, तो हम सिर्फ आसन नहीं करते, बल्कि एक हजारों वर्ष पुरानी परंपरा का सम्मान करते हैं – एक ऐसी विरासत, जिसने जीवन को जीने की दिशा दी है।