बिहार के अररिया जिले में अब किसान खेतों में धान की रोपाई के लिए बारिश का इंतजार कर रहे थे। बारिश होने से उनके चेहरे पर रौनक लौट आई। धान की रोपाई के लिए जो लोग पूर्व में खेतों धान का बिचडा डाले थे, जो तैयार हो गया था। बारिश होने से खेतों में पानी भर से जाने किसान धान की रोपाई शुरू कर दिए हैं। हालांकि अभी रोपाई की रफ्तार में तेजी उतनी नहीं आई है। अभी खेतों में बहुत से किसानों का पौधा पूरी तरह से तैयार नहीं हो पाया है। कम से कम 22 से 24 दिन तक पौधा तैयार होने में लगता है। समय पर धान की रोपाई होने से फसल की कटाई भी समय पर होगी, जिससे रबी की फसल की भी बुआई समय पर हो जाएगी।
कुर्साकाटा प्रखंड में जहां बिचडा तैयार हो गया है, वहां बारिश होने के बाद किसान रोपाई शुरू कर दिए हैं। जिस वर्ष वर्षा का अनुपात जैसा होता है, धान की फसल भी वैसी होती है। भले ही अधिक वर्षा होने से जलजमाव की समस्या से सडकों पर पानी लगना, बाढ़ के कारण बडे पैमाने पर फसलों का नुकसान, सडकें, पुल पुलिया टूटना सीमावर्ती क्षेत्रों की सदियों से एक बडी त्नासदी रही हो, फिर भी यहां के किसान वर्षा का मौसम आते ही तेज बारिश होने की आस लगाए बैठे रहते हैं, क्योंकि यहां की अधिकांश आबादी की जीविका खेती पर आधारित होती है।
यहां की मुख्य फसलों में धान की ही खेती होती है। बिडंबना यह है कि यहां के किसान ऊपरवाले की दया और रहमोकरम पर खेती करते हैं। किसान को इंतजार इस बात का है कि एकबार मूसलाधार बारिश हो जाए तो धान की रोपनी प्रारंभ हो, क्योंकि जबतक खेतों में पानी का जमाव नहीं होगा तो रोपनी नहीं हो सकती। हालांकि कुछ जलग्रहण क्षेत्रों में जहां बारिश से जलजमाव हो गया है, वहां के किसान धान की रोपनी प्रारंभ कर चुके हैं।
कुर्साकांटा के किसान भोला बैठा, शिवनलाल मंडल आदि ने बताया कि धान की रोपनी के बाद कम से कम एक सप्ताह तक खेतों में पानी रहना आवश्यक होता है। फिर जब पौधे हरे भरे हो जाते हैं, तब खेत से पानी निकालना पड़ता है। एक सप्ताह के बाद पुन: फसल को पानी की जरूरत होती है। धान की खेती में वर्षा का महत्व अन्य फसलों की तुलना में अधिक होता है। छिटपुट किसान जिनके खेतों में पानी है धान की रोपनी प्रारंभ कर चुके है। कीचड़ भरे खेतों में समूह में रोपनी करते गीत गाते रोपनी का दृश्य मनमोहक होता है। धान के हरे भरे बिचडे की तरह किसानों के मन में भी हरियाली छाई रहती है।