Farmer Harishankar's inspiring journey towards organic farming
किसान हरिशंकर की जैविक खेती की ओर प्रेरणादायक यात्रा
21 May, 2025 08:39 AM
उनकी यह यात्रा केवल एक किसान की नहीं, बल्कि उस सोच की कहानी है जो कृषि को केवल उत्पादन नहीं, प्रकृति और भविष्य के साथ संतुलन का माध्यम मानती है।
FasalKranti
Vipin Mishra, समाचार, [21 May, 2025 08:39 AM]
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देश के हृदय में बसे उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले का एक किसान, हरिशंकर, आज हज़ारों किसानों के लिए एक प्रेरणा बन चुका है। जिस समय अधिकांश किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की अधिकता से जूझ रहे हैं, हरिशंकर ने पारंपरिक कृषि के दुष्परिणामों से सीखकर एक नई राह चुनी — जैविक और टिकाऊ खेती की राह।
परिचय देश के हृदय में बसे उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले का एक किसान, हरिशंकर, आज हज़ारों किसानों के लिए एक प्रेरणा बन चुका है। जिस समय अधिकांश किसान रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की अधिकता से जूझ रहे हैं, हरिशंकर ने पारंपरिक कृषि के दुष्परिणामों से सीखकर एक नई राह चुनी — जैविक और टिकाऊ खेती की राह। उनकी यह यात्रा केवल एक किसान की नहीं, बल्कि उस सोच की कहानी है जो कृषि को केवल उत्पादन नहीं, प्रकृति और भविष्य के साथ संतुलन का माध्यम मानती है।
समस्या की पहचान: जब मिट्टी थकने लगी हरिशंकर के पास लगभग पाँच हेक्टेयर ज़मीन है। वह वर्षों से परंपरागत तरीके से खेती कर रहे थे — मुख्य फ़सल के रूप में चावल, और अंतर-फ़सल में चना, सरसों व बरसीम। प्रारंभिक वर्षों में उनकी फ़सलें अच्छी उपज देती थीं। लेकिन जैसे-जैसे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता बढ़ी, वैसे-वैसे उनकी मिट्टी की उर्वरता घटने लगी। उन्हें धीरे-धीरे यह समझ आने लगा कि मिट्टी की संरचना बदल रही है, उपज में गिरावट हो रही है और फ़सलों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। पौधों में रोग अधिक होने लगे, जल धारण क्षमता कम हो गई, और खेत की मिट्टी रूखी व कठोर हो गई।
समाधान की खोज: जैविक खेती की ओर पहला कदम इस संकट से निकलने के लिए हरिशंकर ने वैकल्पिक तरीकों की तलाश शुरू की। यहीं से उनकी यात्रा ने एक नया मोड़ लिया। उन्होंने जैविक खेती को एक विकल्प के रूप में देखना शुरू किया। हालाँकि यह रास्ता सरल नहीं था। गाँव के लोगों ने उनके निर्णय को संदेह की दृष्टि से देखा। कुछ ने उनका मज़ाक उड़ाया — "अब बिना खाद-कीटनाशक के खेती कैसे होगी?" परंतु हरिशंकर का संकल्प अडिग रहा। उन्होंने क्षेत्रीय कृषि विज्ञान केंद्रों और विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लिया। वहाँ उन्होंने सीखा: • जीवामृत — जीवाणुओं से भरपूर जैविक खाद, जो मिट्टी में सूक्ष्मजीवों को पुनर्जीवित करती है। • बीजामृत — बीजों का जैविक उपचार, जो अंकुरण और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। • नीमस्त्र — कीट नियंत्रण के लिए प्राकृतिक समाधान। उन्होंने खुद अपने खेत में इन तकनीकों का प्रयोग किया और धैर्यपूर्वक परिवर्तन की प्रतीक्षा की।
परिणाम: जब धरती ने मुस्कुराना शुरू किया लगभग तीन वर्षों के प्रयासों के बाद, हरिशंकर के खेत में परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखने लगे। मिट्टी फिर से मुलायम और नम हो गई। खेतों में केंचुए लौट आए — जो मिट्टी की उर्वरता का सबसे बड़ा संकेतक हैं। पौधे हरे-भरे दिखने लगे और रोगों की संख्या में कमी आई। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि उनके खेत अब जैव विविधता से भरपूर हो गए थे — तितलियाँ, मधुमक्खियाँ, चिड़ियाँ और कई लाभकारी कीट-पतंगे फिर से खेतों में दिखाई देने लगे। उनकी फ़सलें अब भले थोड़ी कम हों, पर गुणवत्ता कहीं बेहतर थी। जैविक उत्पादों की माँग बढ़ने के कारण उन्हें बाज़ार में अच्छे दाम भी मिलने लगे।
समुदाय में प्रभाव: एक किसान से मार्गदर्शक बनने तक हरिशंकर अब अपने गाँव के लिए एक मार्गदर्शक बन चुके हैं। वे आसपास के किसानों को जैविक खेती के तरीक़ों की जानकारी देते हैं, कार्यशालाएँ आयोजित करते हैं और यह समझाते हैं कि मिट्टी केवल उत्पादन की भूमि नहीं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों की विरासत है। वे कहते हैं — "अगर धरती से लिया है, तो उसे लौटाना भी हमारी ज़िम्मेदारी है।" उनका यह दृष्टिकोण केवल कृषि के लिए ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और समाज के लिए भी एक सकारात्मक संदेश है।
निष्कर्ष: हरिशंकर की कहानी उस बदलाव की मिसाल है, जो जागरूकता, धैर्य और निष्ठा से लाया जा सकता है। जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन से जूझ रही है, ऐसे समय में हरिशंकर जैसे किसान स्थिरता और सतत कृषि की दिशा में आशा की किरण हैं। उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि — "खेती केवल अन्न उगाने का काम नहीं, प्रकृति के साथ संवाद और संतुलन का अभ्यास है।"