Dr. Rajendra Prasad Central Agricultural University Pusa completes fifty years of its establishment
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा अपनी स्थापना के पचास वर्ष पूरे किए
03 Dec, 2021 07:15 PM
बिहार के समस्तीपुर स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा अपनी स्थापना के पचास वर्ष पूरे कर चुका है। राष्ट्रीय स्तर पर 2001 में पहली बार इस विश्वविद्यालय को कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में इसके प्रभेदों के कारण विश्वसनीयता हासिल हुई थी। 2001 में शक्तिमान 1 एवं शक्तिमान 2 नामक मक्के की किस्म को विकिसत किया गया।
FasalKranti
समाचार, [03 Dec, 2021 07:15 PM]
बिहार के समस्तीपुर स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय
पूसा अपनी स्थापना के पचास वर्ष पूरे कर चुका है। राष्ट्रीय स्तर पर 2001 में पहली बार इस
विश्वविद्यालय को कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में इसके प्रभेदों के कारण विश्वसनीयता
हासिल हुई थी। 2001
में शक्तिमान 1 एवं शक्तिमान 2 नामक मक्के की
किस्म को विकिसत किया गया। इसमें प्रोटीन की मात्ना अधिक पाई जाती है। इसकी सफलता
के बाद विश्वविद्यालय ने शिक्तमान 3 ,4 एवं पांच किस्में भी विकिसत की। फिर इटालियन मधुमक्खी से मधु उत्पादन की तकनीक
विकिसत करने, लीची एवं आम के
बगीचों की खाली जमीन पर खेती के लिए कृषि उद्यान प्रगति के तहत मिश्रित फसल
प्रणाली को विकिसत करने के कारण भी इसे खूब वाहवाही मिली। वर्तमान में
विश्वविद्यालय के द्वारा 132 किस्में विकिसत की गई।
इसमें धान की 23, गेहूं की 5 मक्का की 11, अरहर की 3, मूंग की 1, चना की 3, उड़द की एक, शकरकंद की 5, हल्दी की 2, मसूर की एक राय की चार तोरी की दो पीली सरसों की तीन, जामुन की एक, बैगन की दो, कद्दू की एक एवं गन्ने की 22 किस्में सहित कई अन्य फसलों की नई किस्म विकिसत की गई। 3 दिसंबर 1970 को ही इसकी स्थापना बिहार सरकार के शिक्षा आयोग की अनुशंसा पर की गई थी। इन पचास वर्षों के कार्यकाल के दौरान हमने विश्वविद्यालय की उपलिब्धयों पर एक पड़ताल की तो पाया कि विश्वविद्यालय ने जहां कृषि, कृषि अभियंत्र ण, पशुपालन, मत्स्य पालन सामुदायिक विज्ञान एवं जैव तकनीकी से संबंधित उच्च शिक्षा शोध पर बेहतर कार्य किया वहीं सौ से अधिक प्रभेदों को भी विकिसत किया। लेकिन सुखेत मॉडेल ने इसकी पहचान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तब दिला दी जब प्रधानमंत्री ने मन की बात में इसका उल्लेख किया।विश्वविद्यालय ने विदेश व्यापार के अनुकूल सुगंधित धान की किस्में सुभाषिनी विकिसत की। वहीं बोरो धान की उन्नत किस्म गौतम तथा इसके उत्पादन तकनीक भी विश्वविद्यालय ने विकिसत की थी। केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने से पूर्व धान की राजेंद्र भगवती, राजेंद्र मंसूरी वन, तुरंता, प्रभात, कनक, सहित कई किस्में विकिसत हुई।मधुबनी का सुखेत मॉडल ने विश्वविद्यालय को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी। इसमें कचरा के बदले गैस सिलेंडर देने का विश्वविद्यालय ने तंत्न विकिसत किया था। इसे स्वच्छ भारत अभियान का वाहक भी बताया गया। इसी तरह देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर के बेल पत्न एवं फूलों से वर्मी कंपोस्ट तैयार करने, नाव आधारित सोलर पंप सेट, किसानों के साथ मिलकर बीज ग्राम की स्थापना, सोलर प्लेट संचालित मत्स्य बंधु सवारी, भिंडी तोड़ने की यंत्र , आटा चक्की सहित कई उपलिब्धयों को इसने अपने खाते में शामिल कर लिया।
अक्टूबर 2016 को विश्वविद्यालय से केंद्रीय विश्वविद्यालय में परिविर्तत हुआ और इसके विकास में पंख लग गए। केंद्रीय विश्वविद्यालय बनने के बाद यहां 8 नए कोर्स की भी पढ़ाई विश्वविद्यालय स्तर पर की गई। शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालय के द्वारा पुस्तकालय सुविधा, नवीनतम तकनीक से बना छात्नावास, प्रयोगशाला, सहित विभिन्न अनुसंधान के लिए जैसे पशुपालन मत्स्य क्षेत्र शैक्षणकि उद्यान इत्यादि के लिए अलग क्षेत्र विकिसत किए गए। मशरूम की आधा दर्जन से अधिक उत्पाद को विकिसत किया गया। लगभग 50,000 से अधिक लोग इस प्रशिक्षण में भाग लेकर अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं।
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