Demand for bamboo has increased, the area under cultivation will be increased, this is the target set!
बांस की बढ़ी डिमांड, बढ़ाया जाएगा खेती का रकबा, ये रखा गया लक्ष्य!
24 Feb, 2025 01:40 PM
बांस की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा बनती जा रही है. ऐसा लोगों द्वारा प्लास्टिक को लेकर जागरुकता बढ़ रही है.
FasalKranti
समाचार, [24 Feb, 2025 01:40 PM]
बांस की खेती किसानों के लिए फायदे का सौदा बनती जा रही है. ऐसा लोगों द्वारा प्लास्टिक को लेकर जागरुकता बढ़ रही है. ऐसे में पेपर, बांस, और जूट जैसी चीजों से बनें उत्पादों का लोगों में अत्यधिक इस्तेमाल बढ़ गया है. बढ़ती डिमांड को देखते हुए अब त्रिपुरा सरकार ने रकबा बढ़ाने का लक्ष्य तय कर लिया है. इससे किसानों के लाभ की संभावना बढ़ेंगी. सरकार ने इसके लिए 5 सालों की योजना बनाई है, जिसकी शुरुआत कर दी गई है. इसके तहत बांस रकबे से 100 गुना बढ़ाने का टारगेट रखा गया है. राज्य सरकार ने बांस उत्पादन क्षेत्र को विशेष रूप से इंडस्ट्रियल इस्तेमाल के लए लगभग 100 गुना बढ़ा दिया है, जिसके बाद ये 45000 हेक्टेयर भूमि तक विस्तारित होगा.
45 हजार हेक्टेयर में होगी बांस की खेती त्रिपुरा बांस मिशन के अतिरिक्त मिशन निदेशक का कहना है कि फिलहाल त्रिपुरा विशेष रूप से इंडस्ट्रियल इस्तेमाल के लिए 461.32 हेक्टेयर में बांस का उत्पादन करता है और हम 2025-26 से 5 साल में इसे बढ़ाकर 45,000 हेक्टेयर करने की योजना बना रहे हैं. इन 5 वर्षों में से प्रत्येक में नौ हजार हेक्टेयर रकबा जोड़ा जाएगा. उन्होंने कहा कि टीबीएम ने 2018-19 से 2024-25 तक 461.32 हेक्टेयर में विशेष रूप से कमर्शियल जरूरत के लिए हाई डेंसिटी वाले बांस के बागान लगाए हैं. बदलेंगे खेती के नियम अधिकारी ने उम्मीद जताई कि अगर इस त्रिपुरा बांस रोपण विकास योजना को ठीक से लागू किया जाता है तो बांस उत्पादन क्षेत्र में परिवहन जैसी चुनौतियां जैसे दूर हो जाएंगी. उन्होंने कहा कि घने जंगलों या पहाड़ी क्षेत्रों से बांस का परिवहन एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरा है. अगर बांस शहरी क्षेत्रों में निजी भूमि पर उगाया जाता है तो हमें कारखानों तक बांस लाने में कोई समस्या नहीं होगी. जबकि, निजी भूमि पर उत्पादित बांस को काटने से पहले वन विभाग से अनुमति लेने की जरूरत को भी खत्म किया जाएगा. इससे इंडस्ट्री आसान तरीके से बांस की आपूर्ति करने में मदद करेगी. बढ़ेगी डिमांड उन्होंने कहा कि पश्चिम त्रिपुरा जिले के बोधजंगनगर बांस पार्क में दो बड़ी निजी कंपनियां लगी हुई हैं, जहां वे धूपबत्ती और बांस से बनी टाइलें बनाती हैं. दास ने कहा, इन दोनों के अलावा 24 छोटे-छोटे कारखाने भी अगरबत्ती बनाते हैं, जिनकी बैंगलोर, आंध्र प्रदेश, गुवाहाटी और कोलकाता में बहुत मांग है. पूर्वोत्तर राज्य में बांस की वर्तमान जरूरत लगभग 2 लाख मीट्रिक टन सालाना है, जो अगले दो या तीन वर्षों में बढ़कर 4 लाख मीट्रिक टन सालाना होने की उम्मीद है.