प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षा देने के उद्देश्य से शुरू की गई थी, लेकिन हाल के वर्षों में इस योजना से जुड़ी बैंकिंग धोखाधड़ी के मामले सामने आ रहे हैं। किसानों की जानकारी के बिना उनके खातों से प्रीमियम काटकर फर्जी बीमा पॉलिसी बनाई जा रही है, जिससे असली किसान लाभ से वंचित रह जाते हैं, और बीमा कंपनियों व बैंकों की मिलीभगत से एक संगठित घोटाला पनप रहा है।
बिना जानकारी के बीमा कटौती:
किसानों को उनकी जानकारी के बिना कृषि ऋण खाते से बीमा प्रीमियम काट लिया जाता है। जब नुकसान के बाद क्लेम की बात आती है तो पता चलता है कि बीमा तो किसी और नाम से किया गया है या फिर जानकारी अधूरी है।
डुप्लीकेट बीमा पॉलिसी:
एक ही किसान के नाम पर एक ही मौसम में दो या अधिक पॉलिसी जारी की जाती हैं। इससे क्लेम के समय फर्जीवाड़ा करना आसान हो जाता है।
फर्जी दावे और भुगतान:
कुछ मामलों में बैंक अधिकारी, बीमा एजेंट और पंचायत स्तर के बिचौलिए मिलकर फर्जी नुकसान रिपोर्ट तैयार कर बीमा राशि हड़प लेते हैं। असली किसान को इसका पता ही नहीं चलता।
नॉन-लोन किसानों की उपेक्षा:
जिन किसानों ने बैंक से ऋण नहीं लिया, वे बीमा के लिए निजी तौर पर आवेदन करते हैं, लेकिन अक्सर उनका डेटा बीमा कंपनी तक नहीं पहुंचाया जाता या जानबूझकर प्रक्रिया में बाधा डाली जाती है।
2024 में उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के कई किसानों ने शिकायत की कि उनके जनधन खातों से ₹1100-₹1500 तक की कटौती हुई थी, लेकिन न तो उन्हें बीमा पॉलिसी की कोई प्रति मिली और न ही जब ओलावृष्टि से फसल खराब हुई तो मुआवजा।
RTI के तहत मिली जानकारी से पता चला कि बैंक शाखा ने बीमा कंपनी से तालमेल कर 1800 से अधिक फर्जी पॉलिसी बनाई थी।
आर्थिक नुकसान: छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह प्रीमियम राशि भी बड़ी होती है, और नुकसान की भरपाई न होने से वे कर्ज के जाल में फंस जाते हैं।
भरोसा टूटता है: सरकारी योजनाओं से भरोसा खत्म होता है, जिससे किसान बीमा से ही दूर हो जाते हैं।
घोटालों में सरकारी धन की बर्बादी: केंद्र सरकार सालाना हजारों करोड़ की सब्सिडी बीमा कंपनियों को देती है, जिसका बड़ा हिस्सा गलत हाथों में चला जाता है।
RBI और NABARD ने चेतावनी जारी की है कि किसानों की जानकारी के बिना कोई बीमा न किया जाए।
2024 में वित्त मंत्रालय ने फसल बीमा में पारदर्शिता लाने के लिए ‘डिजिटल किसान बीमा पोर्टल’ शुरू किया लेकिन ज़मीनी स्तर पर इसका प्रभाव सीमित दिखा।
कुछ बैंक कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज हुई है, लेकिन दोषियों को सजा कम ही मिली है।
OTP आधारित सहमति प्रणाली: बीमा करने से पहले किसान के मोबाइल पर ओटीपी के माध्यम से अनुमति ली जाए।
बीमा पॉलिसी की कॉपी देना अनिवार्य हो।
ग्राम पंचायत स्तर पर बीमा पब्लिक ऑडिट: हर सीजन के बाद बीमा सूची ग्राम सभा में पढ़ी जाए।
डिजिटल ट्रैकिंग: आधार-लिंक्ड पारदर्शी बीमा सिस्टम लागू किया जाए।
बीमा कंपनियों और बैंकों की नियमित ऑडिटिंग हो।
फसल बीमा किसानों की रक्षा कवच है, लेकिन जब बैंकिंग प्रणाली ही उसमें सेंध लगाए तो यह योजना अपने उद्देश्य से भटक जाती है। जरूरी है कि पारदर्शिता, जवाबदेही और टेक्नोलॉजी आधारित निगरानी से इस घोटाले को रोका जाए। वरना इसका खामियाज़ा किसान नहीं, पूरे कृषि तंत्र को भुगतना पड़ेगा।